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चाणक्य नीति - प्रथमोऽध्यायः श्लोक 16 का अर्थ


विषादप्यमृतं ग्राह्यममेध्यादपि कांचनम् ।
अमित्रादपि सद्वृत्तं बालादपि सुभाषितम् ॥ 16 ॥


श्लोक का विवेचन:


विषादप्यमृतं ग्राह्यममेध्यादपि कांचनम् ।

इस श्लोक में कहा गया है कि विष भी पीने योग्य है, अमृत भी पीने योग्य है, अमेध्य भी ग्रहण किया जा सकता है, और सोना भी अगर दान में मिले तो ग्रहण किया जा सकता है।


अमित्रादपि सद्वृत्तं बालादपि सुभाषितम् ॥ 16 ॥

और यहां यह बताया गया है कि दुश्मन से भी अगर सद्वृत्ति मिले तो उसको ग्रहण करना चाहिए, बच्चे से भी अगर सुभाषित मिले तो उसको ग्रहण करना चाहिए।


इस श्लोक का सारांश:

यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि विवेकपूर्णता और सुभाषिता का आपसी मेल मिलाप करना चाहिए और यह दिखाता है कि विचारशीलता और उच्च नीति को हमेशा ग्रहण करना चाहिए, चाहे स्थिति कुछ भी हो। इससे हमें यह सिखने को मिलता है कि सद्गुण से सम्पन्न व्यक्ति को हमेशा स्वीकार करना चाहिए, चाहे वह किसी भी रूप में हो।

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