वरयेत्कुलजां प्राज्ञो विरूपामपि कन्यकाम् ।
रूपशीलां न नीचस्य विवाहः सदृशे कुले ॥ 14 ॥
श्लोक का विवेचन:
वरयेत्कुलजां प्राज्ञो विरूपामपि कन्यकाम् ।
इस श्लोक में कहा गया है कि एक प्रज्ञ व्यक्ति को एक सुसमृद्ध कुल में उत्पन्न हुई विरूप कन्या को भी वधू के रूप में चुनना चाहिए।
रूपशीलां न नीचस्य विवाहः सदृशे कुले ॥ 14 ॥
और यहां यह बताया गया है कि नीच कुल में उत्पन्न हुई सुंदर रूप वाली कन्या के साथ विवाह करना सुसमृद्ध कुल की उत्पन्नता के समान नहीं होता है।
इस श्लोक का सारांश:
यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि विवाह के समय में व्यक्ति को कुल में समृद्धि की प्राप्ति वाली कन्या का चयन करना चाहिए, चाहे उसका रूप विरूप हो। व्यक्ति को नीच कुल से उत्पन्न हुई सुंदरता की विरूप कन्या के साथ विवाह करने से विवाह सुसमृद्ध कुल की उत्पन्नता के समान नहीं होता। इसके साथ ही, यह श्लोक हमें यह भी बताता है कि व्यक्ति को विवाह के समय में सिर्फ रूप और शील नहीं, बल्कि समृद्धि और सम्मान की प्राप्ति वाली कन्या का चयन करना चाहिए।
No comments:
Post a Comment