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चाणक्य नीति - प्रथमोऽध्यायः श्लोक 12 का अर्थ

आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसंकटे ।
राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बांधवः ॥ 12 ॥

श्लोक का विवेचन:


आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसंकटे ।

इस श्लोक में कहा गया है कि जब कोई व्यक्ति किसी आतुर स्थिति, व्यसन, दुर्भिक्ष, या शत्रुसंकट में पड़ता है।


राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बांधवः ॥ 12 ॥

और यहां यह बताया गया है कि जो व्यक्ति राजमहल और श्मशान के द्वार पर खड़ा रहता है, वह सच्चा बांधव है।


इस श्लोक का सारांश:

इस श्लोक से हमें यह सिखने को मिलता है कि असली बांधव वही है जो हमारे साथ हमारे जीवन की कठिनाईयों, संघर्षों, और अवस्थाओं में भी साथी बना रहता है। शत्रुसंकट, आतुर स्थिति, व्यसन, और दुर्भिक्ष - इन सभी परिस्थितियों में जो हमारे साथ होता है, वही हमारा वास्तविक बांधव होता है। इस श्लोक से हमें यह भी सिखने को मिलता है कि व्यक्ति की साची आपातकालीन अवस्था में ही उसके सच्चे सहायक और बांधव की पहचान होती है।

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