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चाणक्य नीति - प्रथमोऽध्यायः श्लोक 11 का अर्थ


जानीयात्प्रेषणे भृत्यान्बांधवान् व्यसनागमे ।
मित्रं चापत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये ॥ 11 ॥

श्लोक का विवेचन:


जानीयात्प्रेषणे भृत्यान्बांधवान् व्यसनागमे ।

इस श्लोक में कहा गया है कि प्रेषण के समय में अपने भृत्यों को और व्यसन के समय में अपने बांधवों को जानिए।


मित्रं चापत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये ॥ 11 ॥

और यहां यह बताया गया है कि अपत्तिकाल (संघर्ष या संकट) के समय में मित्र को और धन के हानि के समय में अपनी पत्नी को जानना चाहिए।


इस श्लोक का सारांश:

यह श्लोक हमें सिखाता है कि हमें अपने भृत्यों और बांधवों को अच्छे से जानना चाहिए ताकि वे हमारे जीवन में होने वाली विभिन्न परिस्थितियों में हमें सहायता कर सकें। इसके साथ ही, इस श्लोक से यह सिखने को मिलता है कि मित्र को अपत्तिकाल में और पत्नी को धन के हानि के समय में अच्छे से समझा जाना चाहिए, ताकि उन्हें हमारे साथ रहते हुए हमारी मदद कर सकें। इस प्रकार, यह श्लोक हमें व्यक्ति के आस-पास के संबंधों की महत्वपूर्णता पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है।


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