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चाणक्य नीति - प्रथमोऽध्यायः श्लोक 10 का अर्थ


लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता ।
पंच यत्र न विद्यंते न कुर्यात्तत्र संस्थितिम् ॥ 10 ॥

श्लोक का विवेचन:


लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता ।

इस श्लोक में कहा गया है कि लोकयात्रा (भीड़-भाड़) से भय, लज्जा, दाक्षिण्य, और त्यागशीलता - ये चार गुण होते हैं।


पंच यत्र न विद्यंते न कुर्यात्तत्र संस्थितिम् ॥

और यहां यह बताया गया है कि जहां ये चार गुण नहीं होते, वहां कोई भी स्थिति नहीं करनी चाहिए।


इस श्लोक का सारांश:

यह श्लोक हमें बताता है कि जीवन में एक सफल और सुखी स्थिति के लिए हमें लोकयात्रा से भय, लज्जा, दाक्षिण्य, और त्यागशीलता - इन चारों गुणों का ध्यान रखना चाहिए। इन गुणों की उपस्थिति से ही हम अच्छे नागरिक बन सकते हैं और अपने जीवन को सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचा सकते हैं। श्लोक ने हमें सिखाया है कि एक व्यक्ति को समाज में स्थान बनाए रखने के लिए इन गुणों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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