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चाणक्य नीति - प्रथमोऽध्यायः श्लोक 08 का अर्थ


यस्मिंदेशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बांधवाः ।
न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासं तत्र न कारयेत् ॥ 08 ॥

श्लोक का विवेचन:


यस्मिंदेशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बांधवाः ।

इस श्लोक में कहा गया है कि जिस स्थान में सम्मान नहीं है, न कोई वृत्ति है, और न ही कोई बांधव (रिश्तेदार) हैं।


न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासं तत्र न कारयेत् ॥

और यहां यह कहा गया है कि वहां न कोई विद्यागम (शिक्षा) है और ऐसे स्थान में किसी को वास करना नहीं चाहिए।


इस श्लोक का सारांश:

यह श्लोक हमें एक ऐसे स्थान की चरित्रिता को विचारने के लिए प्रेरित करता है जहां सम्मान नहीं है, वृत्ति नहीं है, और न ही कोई साथी बने हैं। इसके साथ ही इसका उल्लेख है कि वहां शिक्षा की कोई सूचना नहीं है और इसलिए उस स्थान में रहना योग्य नहीं है।


**शिक्षा, सम्मान, और साथी - ये सभी तत्व हमारे जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से हैं।** एक सकारात्मक और समृद्धिशील जीवन के लिए, हमें एक स्थान का चयन करते समय इन तत्वों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना चाहिए।

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