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चाणक्य नीति - प्रथमोऽध्यायः श्लोक 07 का अर्थ


आपदर्थे धनं रक्षेच्छ्रीमतां कुत आपदः ।
कदाचिच्चलते लक्ष्मीः संचितोऽपि विनश्यति ॥ 07 ॥

श्लोक का विवेचन:


आपदर्थे धनं रक्षेच्छ्रीमतां कुत आपदः ।

इस श्लोक में कहा गया है कि संकट के समय में धन की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि धन ही ऐसा है जो श्रीमतां (धनवान) को संकट से बाहर निकाल सकता है।


कदाचिच्चलते लक्ष्मीः संचितोऽपि विनश्यति ॥

और यहां कहा गया है कि कभी-कभी जब धन लक्ष्मी की दिशा में चलता है, तो भी वह संचित धन भी नष्ट हो सकता है।


इस श्लोक का सारांश:

यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि संकट के समय में हमें अपने धन की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि धन ही वह साधन है जिससे हम संकट से बाहर निकल सकते हैं। हालांकि, यह भी बताता है कि लक्ष्मी, अर्थात धन, किसी-किसी स्थिति में अचानक चली जाती है और इसलिए संचित धन भी कभी-कभी नष्ट हो सकता है। इसलिए, हमें समझना चाहिए कि संकट के समय में हमें धन के प्रति सावधानी बनाए रखनी चाहिए और उसे संरक्षित रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

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