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चाणक्य नीति - प्रथमोऽध्यायः श्लोक 04 का अर्थ

मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टस्त्रीभरणेन च ।
दुःखितैः संप्रयोगेण पंडितोऽप्यवसीदति ॥ 04 ॥


श्लोक का विवेचन:


मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टस्त्रीभरणेन च ।

इस श्लोक में कहा गया है कि अगर कोई मूर्ख शिष्य किसी दुराचारी स्त्री से शिक्षा प्राप्त करता है, या दुर्जन स्त्री से संबंध बनाता है, तो वह व्यक्ति दुःखित होता है।


दुःखितैः संप्रयोगेण पंडितोऽप्यवसीदति

इस भाग में कहा गया है कि एक पंडित भी दुःखी हो जाता है अगर वह दुःखित संबंधित व्यक्तियों के साथ संपर्क में होता है।


इस श्लोक का सारांश:

यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि आत्मविश्वासहीन और मूर्ख शिष्य किसी भी अशिक्षित व्यक्ति या दुराचारी स्त्री से शिक्षा प्राप्त करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से उसका बुद्धि और चरित्र दोनों ही प्रभावित हो सकते हैं और उसे दुःख का सामना करना पड़ सकता है। पंडित व्यक्ति को भी सतत दुःखित संबंधों से बचना चाहिए, ताकि उसका जीवन सुखमय और सार्थक हो सके।

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