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चाणक्य नीति - प्रथमोऽध्यायः श्लोक 03 का अर्थ

तदहं संप्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया ।
येन विज्ञातमात्रेण सर्वज्ञात्वं प्रपद्यते ॥


श्लोक का विवेचन:


तदहं संप्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया ।

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि वह लोगों के हित के लिए ज्ञान देने का संकल्प करते हैं। यह भगवान का दृष्टान्त है कि वे अपने ज्ञान को मानवसमाज के लाभ के लिए उपयोग में लाना चाहते हैं।


येन विज्ञातमात्रेण सर्वज्ञात्वं प्रपद्यते ॥

इस भाग में कहा गया है कि जिसे एक बार जान लिया जाता है, उसी के द्वारा सर्वज्ञता प्राप्त की जा सकती है। यहां एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि ज्ञान का वास्तविक अर्थ यह है कि एक बार उसे अनुभव करना, उसे जीवन में लागू करना और अपनी सामर्थ्यशाली भूमिका में प्रदर्शन करना।


इस श्लोक का सारांश:

भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में हमें यह सिखाते हैं कि ज्ञान का उचित उपयोग केवल ज्ञान प्राप्ति के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के हित के लिए भी होना चाहिए। एक सच्चे ज्ञानी का लक्ष्य हमेशा लोगों के हित में कार्य करना होता है, ताकि वह अपने ज्ञान के माध्यम से समाज को उत्तम राह में ले सके। भगवान श्रीकृष्ण का दृष्टान्त हमें यह सिखाता है कि ज्ञान का सही उपयोग करना ही असली सर्वज्ञता है।

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