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चाणक्य नीति - प्रथमोऽध्यायः श्लोक 02 का अर्थ

अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तमः ।
धर्मोपदेशविख्यातं कार्याकार्यं शुभाशुभम् ॥


श्लोक का विवेचन:


अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तमः ।

इस श्लोक में कहा गया है कि श्रेष्ठ व्यक्ति वह है जो इस शास्त्र को अच्छे से पढ़ता है, अर्थात् जो व्यक्ति शास्त्रों का अध्ययन करता है और उन्हें अपनाता है। शास्त्रों का यथाशास्त्र अध्ययन करने से ही कोई व्यक्ति सच्ची ज्ञान प्राप्त कर सकता है।


धर्मोपदेशविख्यातं कार्याकार्यं शुभाशुभम् ॥

यह भाग बताता है कि धर्म के उपदेशों का विवेचन करने के पश्चात्, व्यक्ति को शुभ और अशुभ कार्यों का विवेचन करना चाहिए। शास्त्रों के आदान-प्रदान से ही कोई व्यक्ति जीवन में उच्च नैतिक मूल्यों का पालन कर सकता है और सही-गलत की भ्रांतियों से बच सकता है।


इस श्लोक का सारांश:

यह श्लोक धर्म, नैतिकता, और सही जीवन मार्ग की महत्वपूर्णता पर बल देता है। इसमें यह बताया गया है कि श्रेष्ठ व्यक्ति वह है जो शास्त्रों को अच्छे से सीखता है और उनके अनुसार अपने कार्यों को चुनता है। धर्म और नैतिक मूल्यों का पालन करने से ही कोई व्यक्ति शुभ कार्यों का पालन करता है और अशुभ कार्यों से बचता है, जिससे उसका जीवन सफल और सत्य की दिशा में प्रगट होता है।

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