'यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते,
निघर्षणच्छेदनतापताडनैः तथा,
चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते,
श्रुतेन शीलेन गुणेन कर्मणा.'
एक समय की बात है, एक छोटे से राज्य में एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण आश्रम में शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। उनका नाम आचार्य विद्यानन्द था। आचार्य ने अपने छात्रों को विद्या के साथ-साथ जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए भी उन्हें शिक्षा दी।
एक दिन, आचार्य ने अपने छात्रों को एक सुविचार से प्रेरित करते हुए कहा, "जैसे कि सोने का सोचा चार प्रमुख गुणवत्ता मापित करने के लिए चारों ओर से परीक्षण होता है, वैसे ही एक पुरुष को भी चारों ओर से परीक्षण होता है।"
छात्रों ने आचार्य की बातों को समझने के लिए उत्सुकता भरी आँखों से सुना। आचार्य ने आगे कहा, "श्रुति, शील, गुण, और कर्म - ये चारों ही परीक्षण के अंग हैं, जो एक पुरुष की सच्चाई और सफलता की मापदंड होती हैं।"
उन्होंने छात्रों को समझाया कि एक व्यक्ति की श्रुति यानी उसकी शिक्षा, ज्ञान, और विद्या के स्तर को दर्शाती है। शील यानी उसकी चरित्रशीलता, भलाई, और नैतिकता की गुणवत्ता को मापता है। गुण यानी उसकी व्यक्तिगत स्वभाव, आचरण, और व्यवहार की सत्ता को दिखाता है। और कर्म यानी उसके कर्मों और प्रतिबद्धता की गुणवत्ता को प्रतिष्ठित करता है।
आचार्य ने अपने छात्रों को सिखाया कि एक सफल और सत्यनिष्ठ पुरुष को ये चारों गुण विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। इन गुणों को सही दिशा में प्रयोग करने से ही वह सफलता की ऊँचाइयों को छू सकता है।
"यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते,
निघर्षणच्छेदनतापताडनैः तथा,
चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते,
श्रुतेन शीलेन गुणेन कर्मणा."
आचार्य विद्यानन्द की बातों ने छात्रों को यह सिखाया कि सफलता का मार्ग उन गुणों से होता है जो उन्हें आदर्श पुरुष बनाते हैं। इस प्रेरणादायक श्लोक से ही उन्होंने छात्रों को उच्चतम मानकों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
______________________________________________________________
Once upon a time, in a small kingdom, there was a revered Brahmin who served as a teacher in an ashram. His name was Acharya Vidyānand. Acharya not only imparted knowledge to his students but also guided them on how to achieve success in life.
One day, Acharya inspired his students by saying, "Just as gold is tested through various methods to determine its quality, a person is also tested from all sides."
The students eagerly listened, and Acharya continued, "The four tests a person undergoes are his knowledge, character, virtues, and actions."
He explained that a person's knowledge or "Shruti" is measured by his education, intellect, and wisdom. Character or "Sheel" reflects a person's morality, goodness, and ethical values. "Gun" or virtues signify one's personal nature, behavior, and conduct. Finally, "Karma" or actions showcase the quality and dedication of one's deeds.
Acharya emphasized that a successful and truthful person should strive to develop these four qualities. He guided his students to use these virtues in the right direction to attain success.
The teachings of Acharya Vidyānand motivated his students to aspire for the highest standards of life. The analogy of gold being tested became a guiding principle for them, inspiring them to cultivate qualities, uphold good character, exhibit virtues, and perform righteous actions.
No comments:
Post a Comment