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गया, प‌िंडदान और आत्‍मा की मुक्‍त‌ि का क्या है संबंध, जानिए


क्यों गया से लौटकर नहीं आते हैं प्रेत

बिहार की राजधानी पटना से करीब 104 किलोमीटर की दूरी पर बसा है गया जिला। धार्मिक दृष्टि से गया न सिर्फ हिन्दूओं के लिए बल्कि बौद्ध धर्म मानने वालों के लिए भी आदरणीय है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे महात्मा बुद्ध का ज्ञान क्षेत्र मानते हैं जबकि हिन्दू गया को मुक्तिक्षेत्र और मोक्ष प्राप्ति का स्थान मानते हैं।

इसलिए हर दिन देश के अलग-अलग भागों से नहीं बल्कि विदेशों में भी बसने वाले हिन्दू आकर गया में आकर अपने परिवार के मृत व्यकित की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना से श्राद्ध, तर्पण और पिण्डदान करते दिख जाते हैं।

गया के प्रति लोगों के मन जो आस्था मौजूद है वह यूं ही नहीं है। गया के बारे में आप भी अगर गहराई से जानेंगे और इसके अतीत में जाएंगे तो आपके सामने गया के कई ऐसे राज खुलेंगे जो आपको हैरत में डाल देंगे और आप लोक परलोक के ऐसे सवालों में उलझ जाएंगे जिसका जवाब सिर्फ और सिर्फ गया में ही मिल सकता है।

क्यों गया में हर व्यक्ति चाहता है पिंडदान?

क्यों गया में हर व्यक्ति चाहता है पिंडदान?
गया तीर्थ के बारे में गरूड़ पुराण में कहा गया है ‘गयाश्राद्धात् प्रमुच्यन्त पितरो भवसागरात्। गदाधरानुग्रहेण ते यान्ति परामां गतिम्।। यानी गया श्राद्ध करने मात्र से पितर यानी परिवार में जिनकी मृत्यु हो चुकी है वह संसार सागर से मुक्त होकर गदाधर यानी भगवान विष्णु की कृपा से उत्तम लोक में जाते हैं।

वायु पुराण में बताया गया है कि मीन, मेष, कन्या एवं कुंभ राशि में जब सूर्य होता है उस समय गया में पिण्ड दान करना बहुत ही उत्तम फलदायी होता है। इसी तरह मकर संक्रांति और ग्रहण के समय जो श्राद्ध और पिण्डदान किया जाता है वह श्राद्ध करने वाले और मृत व्यक्ति दोनों के लिए ही कल्याणी और उत्तम लोकों में स्थान दिलाने वाला होता है।

गया तीर्थ के बारे में गरूड़ पुराण यह भी कहता है कि यहां पिण्डदान करने मात्र से व्यक्ति की सात पीढ़ी और एक सौ कुल का उद्धार हो जाता है। गया तीर्थ के महत्व को भगवान राम ने भी स्वीकार किया है।

एक कथा के अनुसार दशरथ जी की आत्मा की शांति के लिए भगवान राम सीता और लक्ष्मण के साथ गया आए थे और उन्होंने अपने पिता का श्राद्ध तर्पण किया था। उस समय एक ऐसी घटना हुई थी जिसका प्रमाण आज भी गया में देखने को मिलता है।

गया में है देवी सीता का शाप

गया में है देवी सीता का शाप
प‌िंडदान के ल‌िए सामग्री लाने जब भगवान राम लक्ष्मण के साथ चले गए। उसी बीच दशरथ जी की आत्मा वहां प्रकट हुई और प‌िंडदान मांगने लगी। देवी सीता ने कहा क‌ि आपके पुत्र प‌िंडदान के ‌ल‌िए सामग्री लेने बाजार गए हैं। आने के बाद वही प‌िंडदान देंगे।

ले‌क‌िन जब दशरथ जी की आत्मा नहीं मानी और बार-बार प‌िंडदान मांगने लगी तब देवी सीता ने फल्गु नदी, कौआ, केतकी फूल और गाय को साक्षी मानकर रेत का प‌िंड बनाया और दशरथ जी को प‌िंडदान दे द‌िया। प‌िंड ग्रहण करते ही दशरथ जी की आत्मा को मुक्त‌ि म‌िल गई। इसल‌िए राम जी ने जब दशरथ जी की आत्मा को बुलाया तो वह नहीं आए।

तब देवी सीता ने सब बातें राम जी से कह दी। राम ने पूछा की आख‌िर कोई साक्षी है जो बता सके क‌ि आपने दशरथ जी को प‌िंडदान क‌िया है।

गाय को छोड़कर सभी ने झूठ बोला इसल‌िए देवी सीता ने गाय को छोड़कर सभी को शाप दे द‌िया। देवी सीता के शाप के कारण गया में फल्गु नदी जमीन के नीचे बहती है। प‌िंडदान करने वाले रेत हटाकर नीचे बहती फल्गु नदी में प‌िंडदान करते हैं।

एक राक्षस के कारण गया बना है मोक्ष स्‍थली

 एक राक्षस के कारण गया बना है मोक्ष स्‍थली
पुराणों के अनुसार गया में एक राक्षस हुआ ज‌िसका नाम था गयासुर। गयासुर को उसकी तपस्या के कारण वरदान म‌िला था क‌ि जो भी उसे देखेगा या उसका स्पर्श करगे उसे यमलोक नहीं जाना पड़ेगा। ऐसा व्यक्त‌ि सीधे व‌िष्‍णुलोक जाएगा। इस वरदान के कारण यमलोक सूना होने लगा।

इससे परेशान होकर यमराज ने जब ब्रह‍्मा, व‌िष्णु और शिव से यह कहा क‌ि गयासुर के कारण अब पापी व्यक्त‌ि भी बैकुंठ जाने लगा है इसल‌िए कोई उपाय क‌िज‌िए। यमराज की स्‍थ‌ित‌ि को समझते हुए ब्रह‍्मा जी ने गयासुर से कहा क‌ि तुम परम पव‌ित्र हो इसल‌िए देवता चाहते हैं क‌ि हम आपकी पीठ पर यज्ञ करें।

गयासुर इसके ल‌िए तैयार हो गया। गयासुर के पीठ पर सभी देवता और गदा धारण कर व‌िष्‍णु स्‍थ‌ित हो गए। गयासुर के शरीर को स्‍थ‌िर करने के ल‌िए इसकी पीठ पर एक बड़ा सा श‌िला भी रखा गया था। यह श‌िला आज प्रेत श‌िला कहलाता है।

गयासुर के इस समर्पण से व‌िष्‍णु भगवान ने वरदान द‌िया क‌ि अब से यह स्‍थान जहां तुम्हारे शरीर पर यज्ञ हुआ है वह गया के नाम से जाना जाएगा। यहां पर प‌िंडदान और श्राद्ध करने वाले को पुण्य और प‌िंडदान प्राप्त करने वाले को मुक्त‌ि म‌िल जाएगी। यहां आकर आत्मा को भटकना नहीं पड़ेगा।

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