पुरी की सबसे खास बात तो स्वयं भगवान जगन्नाथ हैं जिनका अनोखा रूप कहीं अन्य स्थान पर देखने को नहीं मिलता है। नीम की लकड़ी से बना इनका विग्रह अपने आप में अद्भुत है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह एक खोल मात्र है। इसके अंदर स्वयं भगवान श्री कृष्ण मौजूद होते हैं।
जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर लहराता झंडा हमेशा हवा के विपरीत दिशा में रहता है।
तीर्थ में आप कहीं भी हों, मंदिर के ऊपर लगे सुदर्शन चक्र हमेशा सामने ही दिखाई देगा।
मंदिर में प्रसाद बनाने के लिए सात बर्तन एक दूसरे पर रखा जाते हैं। और प्रसाद लकड़ी जलाकर पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में लेकिन सबसे ऊपर के बर्तन का प्रसाद पहले पकता है।
समुद्र तट पर दिन में हवा जमीन की तरफ आती है, और शाम के समय इसके विपरीत, लेकिन पुरी में हवा दिन में समुद्र की ओर और रात को मंदिर की ओर बहती है।
मुख्य गुंबद की छाया किसी भी समय जमीन पर नहीं पड़ती।
मंदिर में कुछ हजार लोगों से लेकर 20 लाख लोग भोजन करते हैं। फिर भी अन्न की कमी नहीं पड़ती है। हर समय पूरे वर्ष के लिए भंडार भरपूर रहता है।
कोई भी पक्षी मंदिर के ऊपर नहीं उड़ता है।
सिंहद्वार में प्रवेश करने पर आप सागर की लहरों की आवाज को नहीं सुन सकते। लेकिन कदम भर बाहर आते ही लहरों का संगीत कानों में पड़ने लगता है।
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