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वेद विरोधी 'ब्रह्मकुमारी' सम्प्रदाय के पाखण्ड का भण्डाफोड़। बहुत ही जबरजस्त लेख है इसे सभी हिन्दुओं को पढ़ना चाहिए तथा जो हमे धर्म के नाम पर ठग रहे है उनको उचित प्रत्युतर देना चाहिए। ये लेख आर्यसमाज द्वारा प्रकाशित की गई है। मित्रोँ, हमारे हिन्दू समाज का कैसा दुर्भाग्य है कि इसमेँ जो भी चाहता है परमात्मा बन बैठता है। कोई मनुष्य बनना ही नहीँ चाहता। मुसलमानोँ मेँ यदि कोई पैगम्बर बनने का दावा करे तो उसे तुरन्त छुरे से कत्ल कर दिया जायेगा। ईसाइयोँ मेँ भी कोई ईसा का अवतार नहीँ हो सकता। पर हमारे यहाँ जो चाहता है झट अवतार बनकर मोक्ष का ठेकेदार बन जाता है। आज हम एक ऐसे ही वेद विरोधी 'ब्रह्मकुमारी' सम्प्रदाय के पाखण्ड का भण्डाफोड़ करेगेँ। ये मत वेद, शास्त्र, उपनिषद स्मृतियाँ आदि को नहीँ मानता अपितु उनका घोर निदंक है। इस मत की मुख्य पुस्तक 'साप्ताहिक सत्संग' नाम की किताब है जिसमेँ इस मत की सभी कल्पनायेँ लिखी हुई है। ब्रह्माकुमारी- जैसे आत्मा एक ज्योति बिन्दु है वैसे ही आत्माओँ का पिता अर्थात्प रमात्मा भी ज्योति बिन्दु ही है।(सा॰स पृ॰51) क्या पिता कभी अपने पुत्रोँ मेँ सर्वव्यापक होता है? परमात्मा तो सर्व आत्माओँ का पिता है, वह सब मेँ सर्वव्यापक नहीँ है (सा॰स पृ॰ 55) आर्यसिद्धातीँ- वेदादि समस्त शास्त्रोँ मेँ परमेश्वर को सर्वव्यापक माना है, सर्वव्यापक होने से ही परमात्मा, सर्वाधार, सर्वत्र, सर्वान्तर्यामीँ, अनन्त, विश्व का सृजक, पालक एवं संचालक हो सकता है। उसे एक देशीय मानने से ये सब असम्भ होगा। और ये कहना कि पिता पुत्र मेँ व्यापक नहीँ होता है बच्चो की सी बात है। जो यह प्रकट करती है कि इनका सम्प्रदाय प्रवर्तक साधारण सी बुद्धि भी नहीँ रखता था। पिता व पुत्र दो पृथक एक देशीय सत्तायेँ हैँ। पति पत्नी मेँ बीजाधान करके सन्तान के शरीर के लिए आधार बनाता है। जैसे लेखक कलम से किताब लिखता है, सैनिक बन्दूक से गोली मारता है, अब ऐसे कर्ता को कार्य मेँ व्यापक होने का प्रश्न उठाना पागलोँ जैसी बात है बह्मकुमारी-परमपिता परमात्मा ज्योति बिन्दु शिव कलियुग के अन्त मेँ परम धाम से अवतरित होकर एक साधारण मनुष्य के तन मेँ दिव्य प्रवेश करते हैँ और उसका नाम रखते हैँ "प्रजा पिता ब्रह्मा" उसके द्वारा ही वे सृष्टि को कलियुगी से सतयुगी बनाते हैँ। (पृ॰46) आर्यसिद्धान्ती-ब्रह्माकुमारियोँ ! तुम सब लेखराज द्वारा बहका दी गई हो तो ईश्वर के बारे मेँ तुम कुछ भी नहीँ समझ सकती हो। जब तुम्हारा फर्जी त्रिमूर्ति शिव कहीँ ऊपर आसमान मेँ बैठा रहता है यहाँ पृथ्वी पर नहीँ रहता है, तो ऐसे परदेशी खुदा के मानने से कोई लाभ नहीँ होगा। यदि वह यहां आकर रहने लगे तो विश्वास रखो कि हम उसे गोली नहीँ मारेगेँ, शीशे मेँ बन्द करके उसे प्रदर्शनी मेँ बैठाकर सभी को हम उसे दिखावेगेँ कि यह ब्रह्माकुमारियोँ का डरपोक परमात्मा है जो बहुत ऊपर आकाश मेँ लटका रहता है। यदि हो सके तो उस अपने परमात्मा को मय उसकी बीवी के बुलवा लो। लेखराज तो बुढ़ापे मेँ औरतोँ का गुरू बना था और ऐश करते करते मर भी गया तथा तुम चेलियोँ को रोता-बिलखता छोड़ गया। यदि परमात्मा होता तो क्योँ मर जाता और वो भी बिना अपना वादा पूरा किये जो उसने अपनी किताब के पृष्ठ 74 पर किया था? ब्रह्माकुमारी- त्रिमूर्ति भगवान (लेखराज) अब से आठ वर्षोँ मेँ सतयुगी देवी सृष्टि की पुनः स्थापना और कलियुगी आसुरी स्वभाव वाले मनुष्योँ की पुरानी सृष्टि का विनाश ईश्वरीय योजना के अनुसार अभी होने को है (पृ॰31) जिससे पूर्व ही सभी परमात्मा के द्वारा जन्म जन्मान्तर अधिकार स्वर्ग के रचयिता परमात्मा द्वारा प्राप्त कर सकते हैँ (सतयुग मेँ स्वर्गवासी कैसे बनेँ पृ॰33-34) आर्यसिद्धान्ती-उपरोक्त वाक्य ब्रह्मकुमारियोँके गुरू दादा लेखराज ने कहे थे। दुनिया के विनाश व चेले-चेलियोँ के उद्धार का ठेकेदार महाझूठा लेखराज परमात्मा बनता था और सृष्टि का विनाश कराने व चेलियोँ को स्वर्ग अपने साथ ले जाने को आया था पर वो तो खुद ही मर गया। उसकी समझदार चेलियां व चेले उसे सौ बार धिक्कारते होगेँ कि कम्बख्त धोखा दे गया और हमेँ रोता पीटता छोड़ गया। झूठे परमात्मा बनने वालो की पोल जल्दी खुल जाती है। ब्रह्मकुमारी- सृष्टि के इतिहास की हूबहू हर 5000 वर्ष बाद पुनरावृति हुआ करती है। (पृ॰93) आर्यसिद्धान्ती-यदि किसी को विद्या न आती हो तो चुप रहने से मूर्खता छिपी रहती है। झूठे लेखराज की बुद्धिहीनता उसकी मूर्खता प्रकट करती है। भारत की सभ्यता करोड़ो वर्ष पुरानी है। राम रावण को हुए ही लाखो वर्ष बीत चुके हैँ। तब से आजतक पुनः राम रावण का पूर्व जैसा संग्राम नहीँ हुआ। श्रीकृष्ण को ही 5000 वर्ष बीच चुके हैँ। और यदि लेखराज श्रीकृष्ण का अवतार होता तो उसे भी सुदर्शन चक्रधारी महावीर योद्धा होना चाहिए था। किन्तु वह तो ऐश ही करता रहा। चीन और पाकिस्तान भारत पर चढ़ बैठे पर वो कहीँ लड़ने मरने नहीँ गया। ब्रह्माकुमारी- भगवान का अवतरण धर्म की अत्यन्त ग्लानि के समय अर्थात् कलियुग के अन्त मेँ होता है। (पृ॰141) आर्यसिद्धान्ती-तुम गीता की आड़ मेँ पाखण्ड फैलाना चाहती हो। गीता ने धर्म की ग्लानि के समय अवतार की बात की और उसी की नकल मेँ तुमने लेखराज को अवतार बनाकर अपना पन्थ चला डाला। जब गीता को मानती ही नहीँ, उसमेँ मिलावट मानती हो तो उसके इस सिद्धान्त को ही क्योँ स्वार्थवश ठीक मान बैठी हो? ब्रह्माकुमारी- एक युग 5000 वर्ष का होता है जिनमेँ सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग यह चारोँ युग 1250 वर्ष के प्रत्येक होते हैँ। इन चारो मेँ प्रत्येक मनुष्यात्मा को कुल 84 बार जन्म लेना पड़ता है (पृ॰128-134 का सारांश) आर्यसिद्धान्ती-तुमने जो ऊटपटांग कल्पना युगो की कर रखी है उसकी पुष्टि मेँ कोई प्रमाण तुम नहीँ दे सकती हो। ऐसी कल्पनाएं शेख चिल्ली किया करते हैँ। तुम्हारा लेखराज तो बेपढ़ा लिखा हर समय औरतोँ के चक्कर मेँ फँसा रहने वाला व्यक्ति था। जो ऊँट पटांग कल्पना करके तुम जैसी अबोध औरतोँ को फँसाया करता था। ब्रह्मकुमारी- श्रीकृष्ण ही श्री नारायण थे और वे द्वापर मेँ नहीँ बल्कि पावन सृष्टि अर्थात् सतयुग मेँ हुए थे। (पृ॰141) आर्यसिधान्ती- श्रीकृष्णजी युधिष्ठिर के समकालीन महाभारत काल के थे। युधिष्ठिर संवत् भी तब से चला आ रहा है जो अब पाँच हजार के लगभग है। कलियुग का प्रारम्भ भारतीय ज्योतिर्विदो के आधार पर महाभारत के बाद हुआ था। तो श्रीकृष्ण का काल सतयुग बताना तुम्हारी मूर्खता है। ब्रह्माकुमारी- श्रीकृष्ण श्रीराम से पहले हुए थे। परन्तु आज लोगोँ को यह वास्तविक ज्ञान नहीँ है। आर्यसिद्धान्ती-यह बात तुम्हारी महामूर्खता को पूर्ण सिद्ध करती है क्योँकि गीता मेँ श्रीकृष्ण ने कहा है "पवनः पवनाभस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्। अर्थात् शस्त्रधारियोँ मेँ मैँ राम हूँ, इस प्रकार श्रीकृष्ण द्वारा श्रीराम का उदाहरण देकर राम को अपने से पूर्व होना घोषित किया है। इससे स्पष्ट है कि लेखराज शेखचिल्ली था जिसने गीता भी नहीँ पढ़ी थी। ब्रह्मकुमारी- परमपिता शिव ज्योतिर्बिन्दु हैँ। वह परमधाम के वासी हैँ जहाँ पर प्रकाश ही प्रकाश है।"(पृ॰167) आर्यसिद्धान्ती-जब तुम्हारा परमात्मा इस पृथ्वी का वासी नहीँ है तो उस विदेशी की उपासना क्योँ करती है? क्या धरती पर उसे प्लेग खा जायेगी? यदि वह बिन्दु है तो उसके अस्तित्व का ही क्या प्रमाण है? कहीँ वर्षा के जल मेँ बह न गया हो। कैसी हास्यास्पद कल्पना है पाखण्डियोँ की। ब्रह्मकुमारी- वेद उपनिषद पुराण हमारे धर्मशास्त्र नहीँ हैँ। हमारा धर्म का शास्त्र तो गीता है। (पृ॰182) आर्यसिद्धान्ती-वेदोँ के जिन्होनेँ दर्शन नहीँ किये, उपनिषद आदि का ज्ञान इसलिए नहीँ हुआ क्योँकि संस्कृत पढ़ी ही नहीँ थी। अतः उनकी वे ही मूर्ख लोग निन्दा करते हैँ। गीता की तो आढ़ इसीलिए लेती हो क्योँकि तुम्हे लेखराज को अवतार बताकर अपना ढोँगी पन्थ चलाना है। ब्रह्माकुमारी- रामायण तो एक नावेल है जिसमेँ 101 प्रतिशत गपशप डाल दी है (घोर कलह-युग विनाश पृ॰15) आर्यसिद्धान्ती-संसार के ढेरो विद्वान और ऐतिहासिक व्यक्ति रामायण को सत्य घटना का ग्रन्थ मानते हैँ पर तुम्हारा अनपढ़ लेखराज वेद शास्त्र, रामायण आदि के अस्तित्व को भी नहीँ मानता है। उसने रामायण को उपन्यास लिखने का कमीनापन किया है, इसके प्रमाण मेँ उसने क्या दलील दी है? अथवा चेलियाँ बतावेँ की लेखराज के पास क्या प्रमाण है? उपसंहार- इस महादुष्ट सम्प्रदाय के बारे क्या और कहाँ तक लिखे? ये सब सत्य शास्त्रोँ के घोर निन्दक और महानीच हैँ। अधिकतर इस मत की औरते भगाई हुई बहेतू होती हैं। सभी नागरिको को चाहिए की इनके अड्डो में अपनी बहु-बेटियों को न जाने दें, क्युकी औरते ही इनका पहला शिकार होती हैं।
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