प्रश्न:- सोलह संस्कार कौन कौन से हैँ और उनका मतलब क्या क्या है? उत्तर:- हिन्दू धर्म भारत का सर्वप्रमुख धर्म है। इसमें पवित्र सोलह संस्कार संपन्न किए जाते हैं। हिंदू धर्म की प्राचीनता एवं विशालता के कारण ही उसे'सनातन धर्म'भी कहा जाता है। ईसाई,इस्लाम आदि धर्मों के समान हिन्दू धर्म किसी भी व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित किया गया धर्म नहीं,बल्कि प्राचीन काल से चले आ रहे विभिन्न धर्मों एवं आस्थाओं का बड़ा समुच्चय है। महर्षि वेदव्यास के अनुसार मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक पवित्र सोलह संस्कार संपन्न किए जाते हैं। वैदिक कर्मकाण्ड के अनुसार निम्न सोलह संस्कार होते हैं: 1.गर्भाधान संस्कारःउत्तम सन्तान की प्राप्ति के लिये प्रथम संस्कार। 2.पुंसवन संस्कारःगर्भस्थ शिशु के बौद्धिक एवं मानसिक विकास हेतु गर्भाधान के पश्चात् दूसरे या तीसरे महीने किया जाने वाला द्वितीय संस्कार। 3.सीमन्तोन्नयन संस्कारःमाता को प्रसन्नचित्त रखने के लिये,ताकि गर्भस्थ शिशु सौभाग्य सम्पन्न हो पाये,गर्भाधान के पश्चात् आठवें माह में किया जाने वाला तृतीय संस्कार। 4.जातकर्म संस्कारःनवजात शिशु के बुद्धिमान,बलवान,स्वस्थ एवं दीर्घजीवी होने की कामना हेतु किया जाने वाला चतुर्थ संस्कार। 5.नामकरण संस्कारःनवजात शिशु को उचित नाम प्रदान करने हेतु जन्म के ग्यारह दिन पश्चात् किया जाने वाला पंचम संस्कार। 6.निष्क्रमण संस्कारःशिशु के दीर्घकाल तक धर्म और मर्यादा की रक्षा करते हुए इस लोक का भोग करने की कामना के लिये जन्म के तीन माह पश्चात् चौथे माह में किया जाने वाला षष्ठम संस्कार। 7.अन्नप्राशन संस्कारःशिशु को माता के दूध के साथ अन्न को भोजन के रूप में प्रदान किया जाने वाला जन्म के पश्चात् छठवें माह में किया जाने वाला सप्तम संस्कार। 8.चूड़ाकर्म (मुण्डन) संस्कारःशिशु के बौद्धिक,मानसिक एवं शारीरिक विकास की कामना से जन्म के पश्चात् पहले,तीसरे अथवा पाँचवे वर्ष में किया जाने वाला अष्टम संस्कार। 9.विद्यारम्भ संस्कारःजातक को उत्तमोत्तम विद्या प्रदान के की कामना से किया जाने वाला नवम संस्कार। 10.कर्णवेध संस्कारःजातक की शारीरिक व्याधियों से रक्षा की कामना से किया जाने वाला दशम संस्कार। 11.यज्ञोपवीत (उपनयन) संस्कारःजातक की दीर्घायु की कामना से किया जाने वाला एकादश संस्कार। 12.वेदारम्भ संस्कारःजातक के ज्ञानवर्धन की कामना से किया जाने वाला द्वादश संस्कार। 13.केशान्त संस्कारःगुरुकुल से विदा लेने के पूर्व किया जाने वाला त्रयोदश संस्कार। 14.समावर्तन संस्कारःगृहस्थाश्रम में प्रवेश करने की कामना से किया जाने वाला चतुर्दश संस्कार। 15.पाणिग्रहण संस्कारःपति-पत्नी को परिणय-सूत्र में बाँधने वाला पंचदश संस्कार। 16.अन्त्येष्टि संस्कारःमृत्योपरान्त किया जाने वाला षष्ठदश संस्कार। उपरोक्त सोलह संस्कारों में आजकल नामकरण,अन्नप्राशन,चूड़ाकर्म (मुण्डन),यज्ञोपवीत (उपनयन),पाणिग्रहण और अन्त्येष्टि संस्कार ही चलन में बाकी रह गये हैं भारत के समस्त पुजारी अर्चक संतो से विनम्र निवेदन है की इन सोलह संस्कारो को समाज में फ़ैलाने का कार्य हाथ में लें. जिससे सनातनी परंपरा को जीवित रखा जा सके.
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