Wednesday

श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार भक्त कौन है?


(अध्याय १२ स्लोक १३ से २०)
*.जो किसी भी जीवसे द्वेष नहीं करता ।
*.जो सबके साथ मित्रताका व्यवहार करता है ।
*.जो बिना भेद-भावसे दुःखी जीवोंपर सदा दया करता है ।
*.जो परमात्माके सिवा किसी भी वस्तुमें 'मेरापन' नहीं रखता ।
*.जो 'मैंपन' को त्याग देता है ।
*.जो सुख-दुःख दोनोंमें परमात्माको ही समान भावसे देखता है ।
*.जो अपना बुरा करनेवालेके लिये भी परमात्मासे भला चाहता है ।
*.जो लाभ-हानि, जय-पराजय, सफलता-असफलतामें सदा सन्तुष्ट रहता है ।
*.जो अपने मनको परमात्मामें लगाये रहता है ।
*.जो अपने मन और इन्द्रियको जीते हुए है ।
*.जो परमात्मामें दृढ़ निश्चय रखता है ।
*.जो अपने मन और बुद्धिको परमात्माके अर्पण कर देता है ।
*.जो किसीके भी उद्वेगका कारण नहीं बनता ।
*.जो किसीसे भी उद्वेगको प्राप्त नहीं होता ।
*.जो सांसारिक वस्तुओंकी प्राप्तिमें कोई आनन्द नहीं मानता ।
*.जो दूसरेकी उन्नति देखकर नहीं जलता ।
*.जो निर्भय रहता है ।
*.जो किसी भी अवस्थामें उद्विग्न नहीं होता ।
*.जो किसी भी वस्तुकी आकांक्षा नहीं करता ।
*.जो बाहर-भीतरसे सदा पवित्र रहता है ।
*.जो परमात्माकी भक्ति करने और दोषोंका त्याग करनेमें चतुर है ।
*.जो पक्षपातरहित रहता है ।
*.जो किसी समय भी व्यथित नहीं होता ।
*.जो सारे कर्मोका आरम्भ परमात्माकी लीलासे ही होते है, ऐसा मानता है ।
*.जो भोगोंको पाकर हर्षित नहीं होता ।
*.जो भोगोंको जाते हुए जानकर दुःखी नहीं होता ।
*.जो भोगोंके नाश हो जानेपर शोक नहीं करता ।
*.जो अप्राप्त या नष्ट हुए भोगोंको फिरसे पानेके लिये इच्छा नहीं करता ।
*.जो शुभ या अशुभ कर्मोका फल नहीं चाहता ।
*.जो शत्रु-मित्रमें समान भाव रखता है ।
*.जो मान-अपमानको एक-सा समझता है ।
*.जो सर्दी-गर्मीमें सम रहता है ।
*.जो सुख-दुःखको समान समझता है ।
*.जो किसी भी वस्तुमें आसक्ति नहीं रखता ।
*.जो निन्दा-स्तुतिको समान समझता है ।
*.जो परमात्माकी चर्चाके सिवा दूसरी बात ही नहीं करता ।
*.जो परमात्माके प्रेमसे मस्त हुआ किसी भी परिस्थितिमें सन्तुष्ट रहता है ।
*.जो घर-द्वारसे ममता नहीं रखता ।
*.जो परमात्मामें अपनी बुद्धि स्थिर कर देता है ।
*.जो इस भागवत-धर्मरूपी अमृतका सदा सेवन करता है ।
*.जो परमात्मामें पूर्ण श्रद्धा-सम्पन्न है ।
*.जो केवल परमात्माके ही परायण रहता है ।
श्री भाई जी से विरचित गीता चिन्तन से संग्रहित।
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